গরু দিয়ে আকিকা
প্রশ্নঃ ১৩১৩২. আসসালামুআলাইকুম ওয়া রাহমাতুল্লাহ, একটি গরুতে কতো জনের আকিকা দেওয়া যাবে?
উত্তর
و علَيْــــــــــــــــــــكُم السلام ورحمة الله وبركاته
بسم الله الرحمن الرحيم
সম্মানিত প্রশ্নাকরী!
আকীকার ক্ষেত্রে সুন্নাত হলো ছাগল, ভেড়া বা এজাতীয় পশু জবেহ করা। ছেলের জন্য দুটি আর মেয়ের জন্য একটি। তবে ছেলের জন্যও একটি দিয়ে আকিকা করলেও জায়েজ হয়ে যাবে।
গরু দিয়ে আকিকা:
রাসূলুল্লাহ সা. কিংবা সাহাবীগণ গরু দিয়ে আকীকা করেননি। তবে কুরবানীর ওপর কিয়াস করে ফোকাহায়ে কেরাম গরু দিয়েও আকীকা করাকে জায়েজ বলেছেন। সেক্ষেত্রে ছেলের আকিকায় দুইভাগ এবং মেয়ের আকিকায় একভাগ করে আকিকা করা যাবে। কেউ চাইলে একটি গরুতে সাত মেয়ের কিংবা তিন ছেলে এবং একমেয়ের আকিকা করতে পারবে।
فتح الباري (9 / 593):
"والجمهور على إجزاء الإبل والبقر أيضاً، وفيه حديث عند الطبراني وأبي الشيخ عن أنس رفعه: يعق عنه من الإبل والبقر والغنم. ونص أحمد على اشتراط كاملة. وذكر الرافعي بحثاً أنها تتأدى بالسبع، كما في الأضحية، والله أعلم".
المعجم الصغير (1 / 150):
" عن أنس بن مالك قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: من ولد له غلام فليعق عنه من الإبل أو البقر أو الغنم. لم يروه عن حريث إلا مسعدة، تفرد به عبد الملك بن معروف".
مجمع الزوائد ومنبع الفوائد (4 / 70):
"وعن أنس قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:"من ولد له غلام فليعق عنه من الإبل أو البقر أو الغنم". رواه الطبراني في الصغير، وفيه مسعدة بن اليسع وهو كذاب".
صحيح مسلم (4 / 88):
"عن جابر بن عبد الله قال: حججنا مع رسول الله صلى الله عليه وسلم فنحرنا البعير عن سبعة والبقرة عن سبعة".
سنن أبي داود (3 / 56):
"عن عطاء عن جابر بن عبد الله أن النبى صلى الله عليه وسلم قال: « البقرة عن سبعة والجزور عن سبعة»".
الدر المختار وحاشية ابن عابدين (6 / 326):
"[تنبيه] قد علم أن الشرط قصد القربة من الكل، وشمل ما لو كان أحدهم مريدا للأضحية عن عامه وأصحابه عن الماضي تجوز الأضحية عنه ونية أصحابه باطلة وصاروا متطوعين، وعليهم التصدق بلحمها وعلى الواحد أيضاً؛ لأن نصيبه شائع، كما في الخانية، وظاهره عدم جواز الأكل منها، تأمل. وشمل ما لو كانت القربة واجبةً على الكل أو البعض اتفقت جهاتها أو لا، كأضحية وإحصار وجزاء صيد وحلق ومتعة وقران خلافاً لزفر؛ لأن المقصود من الكل القربة، وكذا لو أراد بعضهم العقيقة عن ولد قد ولد له من قبل؛ لأن ذلك جهة التقرب بالشكر على نعمة الولد ذكره محمد".
والله اعلم بالصواب
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